भारत का गौरव उसके पारंपरिक ज्ञान में है और उसे अन्य देशों की नकल करने की आवश्यकता नहीं है: मोहन भागवत

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दिल्ली। स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने मंगलवार को कहा कि भारत का गौरव उसके पारंपरिक ज्ञान में है और उसे अन्य देशों की नकल करने की आवश्यकता नहीं है।

सरसंघचालक डॉ भागवत यहां ‘भारत वैभव’ न्यास के मुख्यालय में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (एनबीटी) की पुस्तक ‘भारत वैभव’ का विमोचन करने के बाद कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। पुस्तक में भारत की गौरवपूर्ण सभ्यता एवं संस्कृति के विभिन्न आयामों को दर्शाने के अतिरिक्त वैश्विक विद्वानों द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा की प्रशस्ति में व्यक्त किये गए उद्गारों को समावेषित किया गया है।

डॉ भागवत ने कहा कि स्वगौरव के अलावा कोई गौरव नहीं है और भारत का गौरव इसका पारंपरिक ज्ञान है। भारत का जन्म पूरे विश्व में अपनी ज्ञान परम्परा को बांटने के लिए ही हुआ है और आत्मा से लेकर अनात्मा तक का ज्ञान इस पुस्तक में विस्तार से प्रस्तुत किया गया है। भारत के बारे में जानकारी के सागर का सभी भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया जाना चाहिए और व्यापक रूप से प्रचारित किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि मुझसे अक्सर पूछा जाता है कि हम चीन, अमेरिका या फिर रूस की तरह क्यों नहीं कर सकते। मैं कहूंगा कि हमें किसी अन्य देश की नकल आखिर करनी ही क्यों है। हमें उनकी तरह करने के बजाय चीजों को अपने ढंग से करना चाहिए। सरसंघचालक ने कहा कि पहले की शिक्षा नीति “हमारे अपने लोगों के महान कार्यों” के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं देती थी। उन्होंने कहा कि देश की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारतीय भाषाओं को महत्व देगी।

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि किसी भी राष्ट्र का मनोबल और आत्मविश्वास उसकी संस्कृति की मदद से ही जागृत हुआ है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति शाश्वत है और यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम इसे अपने जीवन में आत्मसात करने और इसे अपनी आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए हर संभव प्रयास करें।

संसद सदस्य डॉ. सत्यपाल सिंह ने पुस्तक की प्रशंसा में कहा कि इस पुस्तक का मूल तत्व एक भारत श्रेष्ठ भारत है और देश को जिस परम वैभव को छूने का निरंतर प्रयास करना चाहिए उसके लिए यह पुस्तक पहला कदम है। भारत अपनी ज्ञान और विज्ञान परम्परा के लिए विश्व गुरु माना जाता रहा है और इसी गौरवशाली परम्परा से आने वाली पीढ़ियों को परिचित करने की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत के अध्यक्ष प्रो. गोविन्द प्रसाद शर्मा ने पुस्तक के बारे में कहा कि भारत की ज्ञान परम्परा विश्व में सबसे प्राचीन है और यह पुस्तक इन्हीं भारतीय मूल्यों को विश्व में पुनः स्थापित करने में अहम् भूमिका निभाएगी।

पुस्तक के लेखक एवं संपादक ओम प्रकाश पाण्डेय ने “भारत वैभव” का वर्णन करते हुए कहा की संस्कृति राष्ट्र रुपी देह की आत्मा होती है और भारत की संस्कृति अपनी गौरवशाली परम्पराओं के साथ आज भी जीवंत है। यह पुस्तक नई पीढ़ियों में जो की भारतीय ज्ञान परम्परा से वंचित हैं, उनमें राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने का प्रयास है।

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