गोसेवा द्वारा सामाजिक समरसता का संदेश

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गोसेवा द्वारा सामाजिक समरसता का संदेश

छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले स्थित ग्राम काण्डसर में गौमाता की ग्राम परिक्रमा बड़े धूमधाम से भव्य स्वागत के साथ मनाया गया जिसमे सैकड़ो की संख्या में गौसेवक एवं ग्रमीणों की उपस्थित होकर इस अद्भूत दृश्य के साक्षी बनते है ।निरन्तर 2006 से अन्नंत महिमा शक्तिसागर गौ सेवा केन्द्र काण्डसर में गौ परिक्रमा एवं स्वागत उत्सव का आयोजन किया जाता है ।तथा विश्वशांति हेतु यज्ञ आयोजित किया गया । प्रतिवर्ष विभिन्न जीव जैसे सांप , नेवला , चूहा , केंचुआ आदि जीव इस यज्ञ अनुष्ठान की अध्यक्षता कर साक्षी बनते हैं ।

तैतीस कोटी देवी -देवताओं का एक साथ स्वागत

चूंकि सत्य- सनातन धर्म का विश्वास है कि गौ माता के शरीर में 33 कोटी देवी -देवता निवास करते है अतः गौमाता के सेवा एवं स्वागत से सभी देवी- देवताओं का एक साथ स्वागत होता है ।
लगभग 2.5 कि. मी. दूरी से मार्ग में नविन धवल वस्त्र बिछाकर स्वागत करते हैं तथा पूरे मार्ग में श्रद्धालूजन धुप- दीप आरती कर गौ माता का स्वागत बड़े आत्मिय भाव से करते हैं ।
गौमाता का स्वागत प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास में ही किया जाता है
इसके पीछे बाबा जी का मानना है कि फाल्गुन मास पवित्र मास है जिसमें गोवर्धन के प्रतिक भगवान श्री कृष्ण जी एवं उनका जीवन चरित्र बिना गौ के अधूरा है और फाल्गुन की होली हमें सारे भेद – भाव को भूलाकर सभी रंगों को स्वीकार्य कर देती है यही पवित्र होली का संदेश है ।हम सभी जाति धर्म के लोगों को रंगो की तरह एक – दूसरे के साथ पवित्र भाव से मिले ।
बाबा कहते हैं कि यह राह उनके लिए भी कठिन था । जब वे एक निम्न वर्ग के लोगों को रसोई व्यवस्था सम्हालने को दिया गया तब उनकी आलोचना प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से होने लगी एवं लोग यहां तक कि आश्नम छोड़ने की बात कहने लगे लेकिन बाबा समाजिक रुढीवादी को भेद भाव को मिटाने कृत संकल्पित हैं ।
उन्होने लोगो से कहा मैने सन्यास जीवन धारण किया है मेरे लिए सब समान हैं यदि मैं अन्य सामान्य लोग की भांति इस समाजिक बुराई को स्वीकार्य नहीं कर सकता बाकी आप लोगों की इच्छा ।
आखिर में बाबा की सत्य सरल जीवन को सभी ने स्वीकारा है ।गौ माता संसार में बढ़ रही अनीति अन्याय को देखकर हिमालय में तपस्यारत पुण्यात्माओं का आवहन किया एवं सभी पुण्यात्माओं को धरती पर विभिन्न वर्गों में जन्म लेकर भेदभाव मिटाने हेतु संकल्पित किया । जिसमें से प्रबुध्द स्वामी भी एक हैं ।

धरतीमाता , गौमाता और माता में समानता

बाबा कहते हैं जिस प्रकार धरतीमाता सभी जीवों का समान रूप से लालन पालन करती है उसी प्रकार गौमाता भी सभी जीवों की माता स्वरूप हैं उनका दुध से लेकर पवित्र ( गोमूत्र) गोबर एवं सम्पूर्ण जीवन प्रकृति और जीवों के संवर्धन हेतु अत्यन्त उपयोगी है ।
तद्समान माता भी अपने जने संतानों के साथ कोई भेदभाव नहीं करती इन तीनों का हमारे जीवन में अत्यन्त महत्व है ।

बाबा उदयनाथ जी का जीवन परिचय

बाबा जी का जन्म उड़ीसा प्रांत के सगलापुर नामक ग्राम में एक संभ्रात कृषक जमिदार परिवार में जन्म हुआ ।
जन्म के कुछ ही समय बाद पिता का स्वर्गवास हो गया ।
आप बचपन से ही अध्यात्म की ओर आकृष्ट थे । जब वे स्कूल गये एवं छात्रों के मध्य भविष्य की योजनाओं पर चर्चा होती थी अन्य छात्र उच्च शासकिय पद एवं उच्च व्यवसाय की अभिलाषा रखते थे । तब बाबा की योजना सहज रूप से योगी बनने की हो गयी थी ।
वे शिक्षक से अध्यात्म एवं भक्ति योग की शिक्षा देने की बात कहते तो शिक्षक आश्चर्य के साथ फटकार लगाते कि यह गुरुकुल नही है ।
फिर एकांत में श्री बाबा जी को बुलाकर अपनी मजबुरीयां बताते कि वे किस प्रकार धर्म अध्यात्म एवं योग की शिक्षा देने में असमर्थ हैं । और पुछते ऐसा विचार तुम्हे आता कहां से है ?
तब बाबा जी बाल हृदय से कहते पता नहीं लेकिन राष्ट्र निर्माता जो हमारे राष्ट्र के नीति निर्णायक हैं वे यदि धर्म योग की शिक्षा नहीं दे सकते तो उन्हें वहां उस पद पर बैठने का अधिकार नहीं ।
और शिक्षक से आग्रह पूर्वक सर्व प्रथम अपने शिक्षक से कोई भी मंत्र देने का निवेदन किया ।
तब शिक्षक ने पुछा तुम्हें किस भगवान की मूर्ति फोटो आकर्षित करती हैं ?
बाबा ने उत्तर मे शिव का नाम लिया फिर श्री शिक्षक महाशय ने उन्हे शिव पंचाक्षरी मंत्र ॐ नमः शिवाय का मंत्र दिया और फिर एकांत स्थल वन , मंदिर और नदी के समीप में बाबा जी ध्यान जप करने लगे फिर 16 वे वर्ष की आयू में आपने सत्य सनातन महिमा धर्म की दीक्षा ले सन्यास ग्रहण कर लिये ।
एवं तदपश्चात गुरू आज्ञा से दक्षिण कौशल के दण्डकारण्य वर्तमान छत्तीसगढ़ प्रांत के गरियाबंद जिला मैनपुर खण्ड अंतर्गत काण्डसर नामक ग्राम में आश्नम स्थापित कर सत्य सनातन धर्म की साधना एवं गौसेवा में लगे हुए हैं ।
प्रारंभिक दिनों में उन्हें भी विभिन्न कठिनाइयों की अनुभूति हुई आपने अनेक संघर्ष किए फिर भी आपके मन में कोई राग द्वेष नहीं है आपने सभी अनुभूतों को ईश्वरी प्रेरणा माना ।
आश्रम स्थापना के प्रारंभिक दिनो में सुशिला एवं चंचला नामक दो गौमाता से गौशाला प्रारंभ हुआ जिसमें सुशिला की प्राप्ति भवनात्मक एवं मर्मस्पर्शी अनुभव है ।इस आश्नम का प्रभाव आस पास के सैकड़ों गांव एवं 7000 से अधिक दीक्षित सदस्य के अलावा 15000 लोगों के बीच है जिसमें सभी पंथ ,वर्ग , समुदाय शामिल है ।400 की संख्या में गौ आश्नम में सुखपूर्वक निवासरत हैं जिसके गोबर एवं गोपवित्र का उपयोग जैविक कृषि कार्य हेतु होता है ।आयुर्वेद के द्वारा एवं गौ अधारित पंचगव्य के माध्यम से विभिन्न साध्य – असाध्य रोगों का उपचार करते हैं ।बाबा अलेख महिमा के दीक्षा द्वारा समाज को शाकाहार,समरसता , सद्भाव एवं स्वस्थ जीवन का दीप लोगों के बीच प्रकाशित कर रहे हैं ।आश्रम में वृध्द सन्यासियों की सेवा की जाति है ।

अलेख महिमा की दीक्षा ग्रहण करने की प्रक्रिया

पंचगव्य द्वारा स्नान एवं पवित्र पान के द्वारा संस्कारित कर उन्हे गेरुवा वस्त्र दिया जाता है । यह गेरूवा वस्त्र समान्य रंग ना होकर धरती का अंश अर्थात मिट्टी का वास्तविक रंग से तैयार किया जाता है । जिसे आश्रम परिवार के सभी सदस्य ग्रहण करते हैं ।
बाबा जी के मन में क्रांति का विचार सहज जान पड़ता है वे शासन प्रशासन के द्वारा चलाए जा रहे जनकल्याण कारी योजनाओं को लेकर संतुष्ट नजर नहीं आते हैं खासकर गौ सेवा एवं संरक्षण को लेकर । उन्हें गौ सेवा संरक्षण पर राज्य एवं देश से विशेष आग्रह है । राष्ट्र एवं समाज को संबोधित करते है कि देश में जब तक पूर्णत: गौवध प्रतिंबधित नहीं किया जाता तब तक देश में शांति एवं समृद्धि की स्थापना नही होगी सत्य सनातन धर्म गौ पर ही आधारित है अतः हम सबका परम कर्तव्य है कि हम गौ कि संवर्धन एवं संरक्षण की चिंता करें ।
देश की महान चरित्र में से एक श्री कृष्ण जी के जीवन में गोवर्धन का महत्वपूर्ण स्थान है मनुष्य होनेऔर संसार में ज्ञान बुध्दी विवेकी जीव के नाते पूरे संसार की प्रकृति , जीव – जंतुओं की चिन्ता करना हमारा परम कर्तव्य एवं मानव धर्म के अंतर्गत आता है।जिस प्रकार पशुओं की निर्मम हत्या कर चौक चौराहों पर उनके चमड़ी को उधेड़ कर लटकाया जाता है अमानविय कृत्य है ।
इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगना चाहीए ।अन्यथा संसार को समाप्त होने से कोई रोक नहीं सकता ।बाबा के विषय में उनके शिष्य एवं ग्रमीणों ने बताया कि सरल बाल व्यवहार एवं उनके चमत्कार की चर्चा सर्वत्र सुनने को मिलती है जिसमें हिंसक पशुओं का बाबा के समक्ष अहिंसक हो जाना । लोगों की समस्याओं का निदान सहित असमाजिक तत्वों का भूमिभूत हो जाना शामिल है ।

Sparsh
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